बहो में हम सब बधे,रात हुई कब भोर
घर से बाहर पग धरें ,मन घर में रह जाय
फाइल अल्बम सी लगे ,काम न बिल्कुल भाय
स्वेटर हम बुनते रहे ,गर्म प्यार का ऊन
उटकमंड मंसूरिया ,घूमे देहरादून
प्यास बुझाए ना बुझे ,मरुथल जैसी प्यास
स्वर्गिक सुख में डूबते ,खोते होस हवास
घर ग्रहस्थी बढ़ती गयी ,खर्चों का सैलाव
हुईं सयानी बेटियाँ , दान मांग प्रस्ताव
जरा सौंप खुश हो रहा भूख प्यास औ' हार
जैसे सागर शांत हो ,गुजर जाय ज्यों जुवार
भोगे सपनों के सभी टूट गए संदर्भ
रथ कैसे आगे बढे ,थके थके गन्धर्व
सभी कथानक हो गए ,धीरे धीरे मौन
बूढी -टूटी नाव से ,हाथ मिलाये कौन
जितने अल्प बिराम थे ,हो गए पूर्ण विराम
भूख थमी करने लागी ,सुबह शाम आराम
लाल लाल काले हुए ,कमल सरीखे गाल
अनगिनती झुर्री भरा ,पछताता है भाल
[प्रकाशित प्रेस्मेनभोपाल :२१.०३ .०९ प्रष्ठ१३.]