Thursday, July 11, 2013

दुखद त्रासदी किसका दोष ?

दुखद त्रासदी के लिए ,मढ़े प्रकृति सिर दोष
भूल न अपनी मानते ,लीला उसका कोष

अंधाधुंध विकास ने ,खोले बिपदा द्वार
प्रकृति नाती ने हार कर ,ड़ाल दिए हथियार

बाँध और झीलें बनी ,सभी दानवाकार
घन -बिस्फोटन के लिए ,बनती हैं आधार

वन पर्वत सरिता हुईं ,तन मन से लाचार 
घोर प्रदूषण की सहें , बोलो कैसे मार

सकल वनस्पति तंत्र में ,लगा चुके हम आग
बोलो कैसे गायेगी ,प्रकृति बिचारी फाग

प्रकृति साथ हम कर रहे ,आये दिन खिडबाद
कांक्री ट  जंगल उगे ,बैठे उनकी आड़

पर्यावरण बिनाश का ,हमने बोया बीज
सह्न शक्ति अब ना रही ,आती उसको खीझ

पर्यावरण बिनाश की ,बाढ़ प्रलय हैं पीर
रोदन अब थमता नहीं ,बहता खारा नीर

जितनी भी परियोजना ,सभी लाभ के दांव
सीधे सरल विकास के ,उखड गए हैं पाँव

पर्यावरण बिनाश की ,सुनी नहीं यदि टेर
महाप्रलय  मूंह बाएगी ,भले लगे  कुछ देर 
       

Wednesday, June 26, 2013

khand

                                                      खंड खंड उतराखंड 
बाढ़ प्रलय का रूप धर ,लगी पेलने दंड
खंड खंड सब हो गया ,अचल उत्तराखंड

देव भूमि ने ले लिया ,असुर भूधराकार
अवनी अम्मवर में मचा ,रोदन हाहाकार

भव्य भवन बाहन बहे ,ज्यों आंधी में पात
पानी पानी हो गई , सदियों की सौगात

प्रलय सरीखी बाढ़ ने ,ढाया ऐसा क़हर
जो जल जीवन  है ,बही बन गया ज़हर

गाँव शहर सब कुछ बहा,उखड़े सबके पाँव
कोई चिन्ह बचा नहीं ,बांचें जिससे नांव

जाने कितने बह गए ,कितने लिए समाधि
पता नहीं कल कौन सी ,गले पड़ेगी व्याधि

थमीं हुई हर सांस पर ,सासें थामें लोग
बाधें बैठे आस सब , कब आये संयोग

आँख सामने टूटती ,अपनों की जब सांस
जीवन भर भूलें नहीं ,कटे न दुःख की फांस

आँखें पथरा सी हुईं ,जिसने देखा द्रश्य
मगर लुटेरे लूटकर ,हो जाते अद्रश्य

जो सबके ही नाथ हैं ,क्या हो गए अनाथ
देख देख हैरान सब ,ठोंक रहें हैं मांथ 


 

Monday, December 24, 2012

इस गुस्से का देश को ,दो गे क्या अंजाम

आये दिन होने लगे ,सामूहिक अपराध
बहन बेटियों की अरे ,तार तार हर साध

सामूहिक दुष्कर्म की,लम्बी लगी कतार
मंत्री संत्री से जुड़े    ,गिन लो तार हज़ार

सामूहिक दुष्कर्म पर ,मचा हुआ कुहराम
इस गुस्से का देश को ,दो गे  क्या अंजाम

गली गली में हो रहा ,गुस्से का इज़हार
मुख प्रष्ठों पर छापते ,देखो सब अखबार

सभी पहरुए देश के ,साधे  बैठे मौन
बहन बेटियों की सुने,चीख पुकार कौन

सत्ताधीशों ने सुनी .ज्यों ही चीख पुकार
अपने महलों में छुपे करके बंद किवार

पुलिस हाथ में फहरते .लाठी डंडा मार
बेगुनाह सब झेलते ,मार पीट का भार

नवयुवकों की भीड़ ने ,छोड़ा जो अभियान
 हक्का बक्का तंत्र हो,खो बैठा पहचान

नवयुवकों की भीड़ में ,असली हिन्दुस्तान
सामूहिक दुष्कर्म का ,मांगे सही निदान

बुझे बुझाए ना बुझे,दुष्कर्मों की  आग
गिनती करना है कठिन ,इतने अनगिन दाग

जूँ रेगेगी कान पर ,कब ओ सत्ताधीश
अपराधी के सामने ,खड़े निपोरे खीश

देश अस्मिता हो रही ,दुनिया में बदनाम
अपराधी को छूट से ,नहीं बनेगा काम

सामूहिक सहयोग से,मिट सकते दुष्कर्म
शासन जनता समझ ले, सीधा साधा मर्म
[भोपाल:24.12.2012]

Friday, November 2, 2012

शरदपूर्णिमा

शरद पूर्णिमा चाँदनी ,ज्यों चांदी की धूप
सकल गगन शासन करे ,चाँद अकेला भूप 
राजकुमारी चांदनी ,तारों सज्जित हार                                      
दशों दिशा में झूमती ,मस्ती भरी बहार
रवि दादा की हेकड़ी ,चारों खानों चित्त
शरद चाँदनी धवल तन,मोहे सबका चित्त
शरदपूर्णिमा चाँदनी ,बरसे अमृत धार
सब मन ब्रजनंदन बने ,भक्ति प्रेम रसधार
शरद चाँदनी में घुला ,गंगा जमुना नीर
खीर पकाकर जो पिए ,छूमन्तर हो पीर
शरद चाँदनी में खिले ,ताजमहल का रूप
शाहजहाँ मुमताज़ के ,अमर प्रेम की धूप
सागर लहरें माँगतीं ,प्यार प्यार बस प्यार
शरद चाँदनी से मिलीं ,उमड़ा मन में ज्वार
भीगी भीगी चाँदनी ,मन सपनों की ओट
तन्हाई में मेनका ,रह रह खाए चोट
चाँद इशारा कर रहा ,प्यार करो भरपूर
बहकी बहकी चाँदनी ,कुछ कुछ करे गुरूर
बौराए कुछ घूमते ,प्रेम पिपासा रोग
कवि  शायर बुरा गए ,ऐसा अद्भुत योग
 पिहू पिहू सुन रात में ,गई अचानक जाग
जल भुन कोयला ,उर्वशी ,हाय बुझे ना आग
अरे हाय अब क्या करूँ ,प्रियतम बड़े कठोर
शरदपूर्णिमा  चाँदनी ,कोरी आँखों भोर
धूप  छाँव आवागमन ,शूल फूल का मेल
 हिम्मत रखो पहाड़ -सी ,हँस हँस खेलो खेल
शरदपूर्णिमा ने दिए ,अज़ब गज़ब उपहार
धुप छाँव परवेश ने ,बदल दिया व्यवहार
शरदपूर्णिमा चांदनी ,अमृत रस का घोल
घुल जाए जब खीर में ,खीर बने अनमोल
शरदपूर्णिमा चाँदनी ,जगर मगर जब होय
तम जा अपने नीड़ में ,ओड़ चादरा सोय
[भोपाल :26.10.2007] 

Wednesday, February 15, 2012

कूँची कवि दर्शक छके :ग्रांड कैनियन देख


कूँची कवि दर्शक छके :ग्रांड कैनियन देख
[एरिज़ोना अमेरिका का प्राक्रतिक सातबां आश्चर्य ]

नदियाँ तो देखीं निरीं ,पर न ऐसी एक
चप्पे चप्पे पर  लिखे ,जिसके लेख अनेक

कोलोरोडो नदी का ,रहस्यमई इतिहास
नई नई खोजें लिए ,नया नया इतिहास

आँख मिचौनीं खेलती ,कुशल नदी की धार
जो जितना गहरा धँसा,लाया उतना सार

ऊंचे मौन पठार पर ,पड़े क्षरण के घाव
ग्रांड कैनियन जनम दे ,धंसें नदी के पाँव

क्षरण सदा चलता रहा ,बस चीटी की चाल
कागज़ सीं पतलीं परत ,कहतीं सच्चा हाल

धरती के निर्माण की ,कहती कथा विशेष
पढ़ने बालों ने  पढ़े ,परत  दर परत लेख

दुनिया  में अद्भुत  अजब ,ग्रांड कैनियन द्रश्य
अरबों बरसों का छिपा , जिसमें सच्चा सत्य

चट्टानों की विविधता .विविध शिल्प के अंग
तरह तरह की धातुएं ,तरह  तरह के रंग

जन जीवन प्राणी जगत ,तट पर हुआ निहाल
अंकित घाटी  में मिला  ,सबका सच्चा हाल

दो दो बाँधों का दिया ,अमिय सरस उपहार
जन जीवन ने खुशी का ,पहना अनुपम हार

जिसने जो चाहा उसे ,मिला बही संवाद
कूँची कवि दर्शक थके ,कर कर के अनुवाद

[ग्रांड कैनियन नेशनल पार्क एरिजोना :अमरीका :१३.०2.२०1२]

Wednesday, December 28, 2011

पर्यावरण दिवस त्यौहार

तापमान का उछालना , ग्रीन्होल संबाद
ग्लोबल वार्मिंग कर रहे ,प्रदूषण अनुवाद
कचरा उत्पादन बना ,बड़ा भयंकर रोग
आज जरूरत है बड़ी ,समझें इसको लोग
प्रदूषण भूगोल का ,सिमटे जब आकार
ग्लोबलवार्मिंग पर कटें,सपना हो साकार
जल थल वातावारण में ,घुला जहर ही जहर
बदले तेवर ताप के ,उगल रहा है कहर
अगले डेढ़ दशक में ,ग्लेशियर अवशेष
बड़े शहर कुछ द्वीप भी ,हों इतिहास विशेष
जनसंख्या की बाढ़ से ,घटते जंगल जीव
मगर खोखली हो रही ,सुख सपनो की नीव
लेता है अगडाइयां, जल थल का इतिहासनए नए भूगोल का, नकशा होगा ख़ासप्रदूषण भूगोल का ,सिमटे यदि आकारग्लोबल वार्मिंग पर कटें ,सपनें हों साकारअतिरिक्त ऊर्जा स्रोत के ,यदि हम जोड़ें योगप्रदूषण की कोख के ,दूर भगेगें रोंग
अक्षय ऊर्जा श्रोत के ,जल सूरज हैं वायु
उनके खर्चे नपे तुले ,घटे प्रदूषण आयु
हो विकास जब हर तरफ ,बिना प्रदूषण मार
सुख वैभव का राज़ हो ,हराभरा संसार
दुनिया में अब तंत्र के ,खड़े हो गए काननयी नयी नजत योजना ,खीचें सबका ध्यानजन गण मन में जब जगे ,जागरूकता आगपर्यावरण विनास का ,धुले सदा को दागपर्यावरण दिवस का ,हर दिन हो त्योहार
मौसम का बदले तभी ,जग चाहा व्यवहार
[भरूच:०५.०६.२०१०]।

Sunday, December 18, 2011

mantriyal gungaan

          मांट्रियल गुणगान :आनन्द के दोहों में 

मांट्रियल की भव्यता ,मन- मोहक  मन -  मीत
कवि मन को करती विवश, गाओअभिनव गीत
मांट्रियल    सबसे    बड़ा ,क्यूबेक  का शहर
घनी बस्तियों के जमें  ,जहां अंगदी पैर
कहीं पुरानी बस्तियां ,कहीं आधुनिक  शहर
गगन चूमती चिमनियाँ ,उगल रहीं हैं ज़हर
छोटे छोटे घर कहीं ,बीच शहर से दूर
गगन चूमतीं बस्तियां ,करें उन्हें मजबूर
विध्द्या धन व्यापार का ,मांट्रियल है गाँव
नाम कमाने में कभी ,नहीं हारता     दाँव
ओलम्पिक टावर खडा ,अपना सीना तान
थकें नहीं यश गान में,दुनिया के मेहमान
पन्नों में इतिहास के ,मांट्रियल के काम
पग पग पर उनकें लिखें ,शिलालेख पर नाम
ईंट पत्थरों ने बुनें ,घर सड़कें बाज़ार
ईटनसेंटर मॉलमें ,मन चाहे उपहार
विज्ञान केंद्र में जब घुसो, दिखे डायनासोर
वैज्ञानिक जिनसे पढ़ें,जीव -जनम का भोर
साधन सब आवागमन ,खानपान सुखधाम
जिसको जैसा चाहिए ,उसको बैसा काम
गोरे गोरे तन वदन, सबको ह्बोश-हबास
सब दुनिया से आ बसे,फ्राँस देश के ख़ास
फ्रेंच फ्राँस की धरोहर ,मांट्रियल पहचान
सकल विश्व यह जानता,देता है सम्मान
दुनिया में ऐसे शहर ,गिनना है आसान
जिनका शाम सुवहदिवस,गाता है गुणगान
स्वर्ण अक्षरों में लिखा, मांट्रियल का नाम
बाँट रहा आनन्द धन ,सब जग को अविराम
[मांट्रियल -ग्रान्द्फल्स कर यात्रा :१७.१२.२०११]
`