माँ की ममता के लिए मिले नहीं उपमान
ढूंढ ढूंढ कर थक गए तुलसी सूर महान
किलकारी जब खेलती ,खेले सब संसार
परिजन मन मन हीं man hanse
Sunday, January 24, 2010
Saturday, January 16, 2010
आनंद क दोहे :मुस्कान
राई -सी मुस्कान से ,पर्वत जैसे पीर
पानी पानी बन झरे ,जैसे निर्झर नीर
अधरों से मोनालिसा ,बाँट रही मुस्कान
मरकर भी जीवित अभी ,कला जगत की शान
सुरा सुरैया माधुरी ,मधुर अधर मुस्कान
आँख मींच पहचान लो ,जाने सकलjahaan
पानी पानी बन झरे ,जैसे निर्झर नीर
अधरों से मोनालिसा ,बाँट रही मुस्कान
मरकर भी जीवित अभी ,कला जगत की शान
सुरा सुरैया माधुरी ,मधुर अधर मुस्कान
आँख मींच पहचान लो ,जाने सकलjahaan
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