Saturday, January 16, 2010

आनंद क दोहे :मुस्कान

राई -सी मुस्कान से ,पर्वत जैसे पीर
पानी पानी बन झरे ,जैसे निर्झर नीर
अधरों से मोनालिसा ,बाँट रही मुस्कान
मरकर भी जीवित अभी ,कला जगत की शान
सुरा सुरैया माधुरी ,मधुर अधर मुस्कान
आँख मींच पहचान लो ,जाने सकलjahaan

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