Sunday, June 21, 2009

बारहमासा दोहों में

महुआ जामुन आम का ,बौराए जब बौर
हसीं खुशी से चेत में , सब के मुह में कौर
सरसों गेहूं चना से ,मुस्काये जब खेत
होरी को बैशाख दे ,नवजीवन संकेत
रो रोम से जब बहे ,नदी पसीना धार
जेठ दुपहरी तब करे ,वार वार ,बस वार
कजरारे घन सघन हों ,बरसें कहें अषाढ़
दादुर मोर किसान के ,घर खुशियों की बाढ़
सावन की रिमझिम भली ,भाइ बहन त्यौहार
दार दार झूला परे,पेंगों का उपहार
थामे ण भादों में अरे ,वर्षा की रफ़्तार
छानी छप्पर सिसकते ,जन जीवन लाचार
पित्रपक्ष पक्ष की धूम हो ,घर घर आय बुखार
मच्छर झींगुर काग का, स्वागत करे क्वार
अन्धकार को बिदा दें,दीवाली के दीप
राम आगमन अबध में कातिक लिखता टीप
अगहन अगवानी करे ,जाने गौना रीति
राधा सी नाचने लगे ,भूली बिसरी प्रीति
पूस मॉस में पेलती,क्रूर ठण्ड जब दंड
तब आलाव करने लगे ,कीर्तन भजन अखंड
माघ मास पाला पड़े ,हो किसान हैरान
फसलें ढोतीं है सदा ,अनचाहा नुक्सान
मन ब्र्न्दाबन रंग रागे ,बरसाने की फाग
गागुन वन वागन नाचे ,जले पलाशन आग
[भोपाल :०७.१०.ओ६]

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