Saturday, June 20, 2009

सन्नाटे में गाँव

बाग़ बगीचे गाँव में ,खो बैठे पहचान
आम जाम जामुन हुए ,बाज़ारों की शान
पीपल बरगद नीम ने ,खींच लिए हैं हाथ
हमने ही जबसे दिया ,नीलामी का साथ
ताल तलैया नहर के ,बदल गए हैं पाट
अन्धकार में रौशनी, लिए गाँव में हाट
गायब सब पगदंदियाँ ,खा चकबंदी मार
सड़कें जोडें गाँव के,अब शहरों से तार
सड़क गाँव को ले गई, फुटपाथों की छाँव
संनते में भटकते ,छानी छप्पर गाँव
अत पात पीले झरे ,खड़े पेड़ सब ठूंठ
जगर मगर सब शहर की ,गयी गाँव से रूठ
ठिठुर ठिठुर ठंडा हुआ ,होरी धनिया गाँव
रातरात भर तापता ,जान बचाय अलाव
घर आँगन बरसात में ,कीचड दलदल गाँव
पछताते नर नारियाँ,जामे रोग के पाँव
जमींदार खोखल हुए ,बेंचे खाएं खेत
धन दौलत इज्ज़त हुई,ज्यों मुठ्ठी में रेत
जिनके घर में थी नहीं ,कौडी भून्जीं भांग
हाथ पसारे गाँव की ,पूरी करते मांग
भूमिहीन हैं गाँव में ,ऋण से लदे किसान
दानों को मुहताज है ,संकट में ईमान
बांग न मुर्गों की मिले ,बन बागन में मोर
जकडे सारे गाँव को ,बाघ भेड़िया शेर
घर आँगन खलियान का ,बदल गया भूगोल
गली गली में डोलता ,राजनीति भूडोल
टॉप तमंचा गोलियाँ ,घर घर चौकीदार
पकड़ फिरौती मांग में ,शामिल रिश्तेदार
शाम ढले कपने लगे ,थर थर सारा गाँव
द्वार देहरी में बधें,नर नारी के पाँव
कहाँ न जाने खो गए ,रेशम से सम्बन्ध
खान पान अनुराग के ,भंग हुए अनुबंध
[भोपाल:२८.०१.०५]







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