लाख पतझड़ की क्रूरता ,हुआ वसंत उदास
आँखों में तिरने लगा ,समय समाज समास
आनन फानन कर दिया ,जारी फिर परिपत्र
सबने रेखांकित किया,सुभागमन नवसत्र
संवरे सजे वसंत ने ,किया विशद ऐलान
पतझर भौचक्का हुआ ,भगा छोड़ मैदान
तितली भौरों ने रचे , नए- नए संवाद
खिले अधखिले फूल का ,किया तुरत अनुवाद
कलियाँ मन हीं मन ,हंसीं होंगे पीले हाथ
जीवन पथ पर बढेंगे ,साथ साथ हाँ साथ
राधा बन नचने लगी ,गाये मीरा गीत
कोयल के मन में जगी ,प्रेमप्रीत नवनीत
खिले फूल बागन नचे ,लगी पलाशन आग
धरा गगन गाने लगा ,फाग फाग बस फाग
महकी सकल वसुंधरा ,पिघला जनगण ताप
दुख्दार्दों के धुल गए ,बचे खुचे संताप
यत्र तत्र सर्वत्र है ,चर्चा का सन्दर्भ
सजाधजा मधुमास ज्यों ,सचमुच में गंधर्व
जंगल में मंगल करे ,यह वसंत की रीति
विरहिन मन में उमगती ,परदेशी की प्रीति
सपने बनकर उड़ रहे ,जैसे उड़े वसंत
थाह न कोई पा सका ,पंडा मुल्ला संत
बरसाने के फाग का ,डंडा लिए वसंत
रंग गुलाल उड़ा रहा, ओर न छोर अनंत
फूल फूल को सूंघती ,बजा रही है ढोल
सबमें गंध सुगंध कहाँ ,हवा खोलती पोल
पीली पीली ओढ़नी , हरा घाघरा रंग
सरसों दुलहन रूप लख ,जग सारा है दंग
खेत बाबरे हो गए ,रहीं न फसलें बाँझ
तारे झिमिल जल उठे ,आई ज्यो ही साँझ
काना मटर के खेत में ,दमके जुगुनू फूल
फसल सुहागिन का कभी, गलत न हो अनुमान
पुलकित हर खलिहान हो ,पुलकित हिन्दुस्तान
[रेलयात्रा;भोपाल विदिशा :३०.०१.२००७]
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Sunday, February 6, 2011
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