Monday, December 24, 2012

इस गुस्से का देश को ,दो गे क्या अंजाम

आये दिन होने लगे ,सामूहिक अपराध
बहन बेटियों की अरे ,तार तार हर साध

सामूहिक दुष्कर्म की,लम्बी लगी कतार
मंत्री संत्री से जुड़े    ,गिन लो तार हज़ार

सामूहिक दुष्कर्म पर ,मचा हुआ कुहराम
इस गुस्से का देश को ,दो गे  क्या अंजाम

गली गली में हो रहा ,गुस्से का इज़हार
मुख प्रष्ठों पर छापते ,देखो सब अखबार

सभी पहरुए देश के ,साधे  बैठे मौन
बहन बेटियों की सुने,चीख पुकार कौन

सत्ताधीशों ने सुनी .ज्यों ही चीख पुकार
अपने महलों में छुपे करके बंद किवार

पुलिस हाथ में फहरते .लाठी डंडा मार
बेगुनाह सब झेलते ,मार पीट का भार

नवयुवकों की भीड़ ने ,छोड़ा जो अभियान
 हक्का बक्का तंत्र हो,खो बैठा पहचान

नवयुवकों की भीड़ में ,असली हिन्दुस्तान
सामूहिक दुष्कर्म का ,मांगे सही निदान

बुझे बुझाए ना बुझे,दुष्कर्मों की  आग
गिनती करना है कठिन ,इतने अनगिन दाग

जूँ रेगेगी कान पर ,कब ओ सत्ताधीश
अपराधी के सामने ,खड़े निपोरे खीश

देश अस्मिता हो रही ,दुनिया में बदनाम
अपराधी को छूट से ,नहीं बनेगा काम

सामूहिक सहयोग से,मिट सकते दुष्कर्म
शासन जनता समझ ले, सीधा साधा मर्म
[भोपाल:24.12.2012]

Friday, November 2, 2012

शरदपूर्णिमा

शरद पूर्णिमा चाँदनी ,ज्यों चांदी की धूप
सकल गगन शासन करे ,चाँद अकेला भूप 
राजकुमारी चांदनी ,तारों सज्जित हार                                      
दशों दिशा में झूमती ,मस्ती भरी बहार
रवि दादा की हेकड़ी ,चारों खानों चित्त
शरद चाँदनी धवल तन,मोहे सबका चित्त
शरदपूर्णिमा चाँदनी ,बरसे अमृत धार
सब मन ब्रजनंदन बने ,भक्ति प्रेम रसधार
शरद चाँदनी में घुला ,गंगा जमुना नीर
खीर पकाकर जो पिए ,छूमन्तर हो पीर
शरद चाँदनी में खिले ,ताजमहल का रूप
शाहजहाँ मुमताज़ के ,अमर प्रेम की धूप
सागर लहरें माँगतीं ,प्यार प्यार बस प्यार
शरद चाँदनी से मिलीं ,उमड़ा मन में ज्वार
भीगी भीगी चाँदनी ,मन सपनों की ओट
तन्हाई में मेनका ,रह रह खाए चोट
चाँद इशारा कर रहा ,प्यार करो भरपूर
बहकी बहकी चाँदनी ,कुछ कुछ करे गुरूर
बौराए कुछ घूमते ,प्रेम पिपासा रोग
कवि  शायर बुरा गए ,ऐसा अद्भुत योग
 पिहू पिहू सुन रात में ,गई अचानक जाग
जल भुन कोयला ,उर्वशी ,हाय बुझे ना आग
अरे हाय अब क्या करूँ ,प्रियतम बड़े कठोर
शरदपूर्णिमा  चाँदनी ,कोरी आँखों भोर
धूप  छाँव आवागमन ,शूल फूल का मेल
 हिम्मत रखो पहाड़ -सी ,हँस हँस खेलो खेल
शरदपूर्णिमा ने दिए ,अज़ब गज़ब उपहार
धुप छाँव परवेश ने ,बदल दिया व्यवहार
शरदपूर्णिमा चांदनी ,अमृत रस का घोल
घुल जाए जब खीर में ,खीर बने अनमोल
शरदपूर्णिमा चाँदनी ,जगर मगर जब होय
तम जा अपने नीड़ में ,ओड़ चादरा सोय
[भोपाल :26.10.2007] 

Wednesday, February 15, 2012

कूँची कवि दर्शक छके :ग्रांड कैनियन देख


कूँची कवि दर्शक छके :ग्रांड कैनियन देख
[एरिज़ोना अमेरिका का प्राक्रतिक सातबां आश्चर्य ]

नदियाँ तो देखीं निरीं ,पर न ऐसी एक
चप्पे चप्पे पर  लिखे ,जिसके लेख अनेक

कोलोरोडो नदी का ,रहस्यमई इतिहास
नई नई खोजें लिए ,नया नया इतिहास

आँख मिचौनीं खेलती ,कुशल नदी की धार
जो जितना गहरा धँसा,लाया उतना सार

ऊंचे मौन पठार पर ,पड़े क्षरण के घाव
ग्रांड कैनियन जनम दे ,धंसें नदी के पाँव

क्षरण सदा चलता रहा ,बस चीटी की चाल
कागज़ सीं पतलीं परत ,कहतीं सच्चा हाल

धरती के निर्माण की ,कहती कथा विशेष
पढ़ने बालों ने  पढ़े ,परत  दर परत लेख

दुनिया  में अद्भुत  अजब ,ग्रांड कैनियन द्रश्य
अरबों बरसों का छिपा , जिसमें सच्चा सत्य

चट्टानों की विविधता .विविध शिल्प के अंग
तरह तरह की धातुएं ,तरह  तरह के रंग

जन जीवन प्राणी जगत ,तट पर हुआ निहाल
अंकित घाटी  में मिला  ,सबका सच्चा हाल

दो दो बाँधों का दिया ,अमिय सरस उपहार
जन जीवन ने खुशी का ,पहना अनुपम हार

जिसने जो चाहा उसे ,मिला बही संवाद
कूँची कवि दर्शक थके ,कर कर के अनुवाद

[ग्रांड कैनियन नेशनल पार्क एरिजोना :अमरीका :१३.०2.२०1२]