Friday, November 2, 2012

शरदपूर्णिमा

शरद पूर्णिमा चाँदनी ,ज्यों चांदी की धूप
सकल गगन शासन करे ,चाँद अकेला भूप 
राजकुमारी चांदनी ,तारों सज्जित हार                                      
दशों दिशा में झूमती ,मस्ती भरी बहार
रवि दादा की हेकड़ी ,चारों खानों चित्त
शरद चाँदनी धवल तन,मोहे सबका चित्त
शरदपूर्णिमा चाँदनी ,बरसे अमृत धार
सब मन ब्रजनंदन बने ,भक्ति प्रेम रसधार
शरद चाँदनी में घुला ,गंगा जमुना नीर
खीर पकाकर जो पिए ,छूमन्तर हो पीर
शरद चाँदनी में खिले ,ताजमहल का रूप
शाहजहाँ मुमताज़ के ,अमर प्रेम की धूप
सागर लहरें माँगतीं ,प्यार प्यार बस प्यार
शरद चाँदनी से मिलीं ,उमड़ा मन में ज्वार
भीगी भीगी चाँदनी ,मन सपनों की ओट
तन्हाई में मेनका ,रह रह खाए चोट
चाँद इशारा कर रहा ,प्यार करो भरपूर
बहकी बहकी चाँदनी ,कुछ कुछ करे गुरूर
बौराए कुछ घूमते ,प्रेम पिपासा रोग
कवि  शायर बुरा गए ,ऐसा अद्भुत योग
 पिहू पिहू सुन रात में ,गई अचानक जाग
जल भुन कोयला ,उर्वशी ,हाय बुझे ना आग
अरे हाय अब क्या करूँ ,प्रियतम बड़े कठोर
शरदपूर्णिमा  चाँदनी ,कोरी आँखों भोर
धूप  छाँव आवागमन ,शूल फूल का मेल
 हिम्मत रखो पहाड़ -सी ,हँस हँस खेलो खेल
शरदपूर्णिमा ने दिए ,अज़ब गज़ब उपहार
धुप छाँव परवेश ने ,बदल दिया व्यवहार
शरदपूर्णिमा चांदनी ,अमृत रस का घोल
घुल जाए जब खीर में ,खीर बने अनमोल
शरदपूर्णिमा चाँदनी ,जगर मगर जब होय
तम जा अपने नीड़ में ,ओड़ चादरा सोय
[भोपाल :26.10.2007] 
 

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