Sunday, December 18, 2011

mantriyal gungaan

          मांट्रियल गुणगान :आनन्द के दोहों में 

मांट्रियल की भव्यता ,मन- मोहक  मन -  मीत
कवि मन को करती विवश, गाओअभिनव गीत
मांट्रियल    सबसे    बड़ा ,क्यूबेक  का शहर
घनी बस्तियों के जमें  ,जहां अंगदी पैर
कहीं पुरानी बस्तियां ,कहीं आधुनिक  शहर
गगन चूमती चिमनियाँ ,उगल रहीं हैं ज़हर
छोटे छोटे घर कहीं ,बीच शहर से दूर
गगन चूमतीं बस्तियां ,करें उन्हें मजबूर
विध्द्या धन व्यापार का ,मांट्रियल है गाँव
नाम कमाने में कभी ,नहीं हारता     दाँव
ओलम्पिक टावर खडा ,अपना सीना तान
थकें नहीं यश गान में,दुनिया के मेहमान
पन्नों में इतिहास के ,मांट्रियल के काम
पग पग पर उनकें लिखें ,शिलालेख पर नाम
ईंट पत्थरों ने बुनें ,घर सड़कें बाज़ार
ईटनसेंटर मॉलमें ,मन चाहे उपहार
विज्ञान केंद्र में जब घुसो, दिखे डायनासोर
वैज्ञानिक जिनसे पढ़ें,जीव -जनम का भोर
साधन सब आवागमन ,खानपान सुखधाम
जिसको जैसा चाहिए ,उसको बैसा काम
गोरे गोरे तन वदन, सबको ह्बोश-हबास
सब दुनिया से आ बसे,फ्राँस देश के ख़ास
फ्रेंच फ्राँस की धरोहर ,मांट्रियल पहचान
सकल विश्व यह जानता,देता है सम्मान
दुनिया में ऐसे शहर ,गिनना है आसान
जिनका शाम सुवहदिवस,गाता है गुणगान
स्वर्ण अक्षरों में लिखा, मांट्रियल का नाम
बाँट रहा आनन्द धन ,सब जग को अविराम
[मांट्रियल -ग्रान्द्फल्स कर यात्रा :१७.१२.२०११]
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