Wednesday, June 26, 2013

khand

                                                      खंड खंड उतराखंड 
बाढ़ प्रलय का रूप धर ,लगी पेलने दंड
खंड खंड सब हो गया ,अचल उत्तराखंड

देव भूमि ने ले लिया ,असुर भूधराकार
अवनी अम्मवर में मचा ,रोदन हाहाकार

भव्य भवन बाहन बहे ,ज्यों आंधी में पात
पानी पानी हो गई , सदियों की सौगात

प्रलय सरीखी बाढ़ ने ,ढाया ऐसा क़हर
जो जल जीवन  है ,बही बन गया ज़हर

गाँव शहर सब कुछ बहा,उखड़े सबके पाँव
कोई चिन्ह बचा नहीं ,बांचें जिससे नांव

जाने कितने बह गए ,कितने लिए समाधि
पता नहीं कल कौन सी ,गले पड़ेगी व्याधि

थमीं हुई हर सांस पर ,सासें थामें लोग
बाधें बैठे आस सब , कब आये संयोग

आँख सामने टूटती ,अपनों की जब सांस
जीवन भर भूलें नहीं ,कटे न दुःख की फांस

आँखें पथरा सी हुईं ,जिसने देखा द्रश्य
मगर लुटेरे लूटकर ,हो जाते अद्रश्य

जो सबके ही नाथ हैं ,क्या हो गए अनाथ
देख देख हैरान सब ,ठोंक रहें हैं मांथ 


 

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