Thursday, July 11, 2013

दुखद त्रासदी किसका दोष ?

दुखद त्रासदी के लिए ,मढ़े प्रकृति सिर दोष
भूल न अपनी मानते ,लीला उसका कोष

अंधाधुंध विकास ने ,खोले बिपदा द्वार
प्रकृति नाती ने हार कर ,ड़ाल दिए हथियार

बाँध और झीलें बनी ,सभी दानवाकार
घन -बिस्फोटन के लिए ,बनती हैं आधार

वन पर्वत सरिता हुईं ,तन मन से लाचार 
घोर प्रदूषण की सहें , बोलो कैसे मार

सकल वनस्पति तंत्र में ,लगा चुके हम आग
बोलो कैसे गायेगी ,प्रकृति बिचारी फाग

प्रकृति साथ हम कर रहे ,आये दिन खिडबाद
कांक्री ट  जंगल उगे ,बैठे उनकी आड़

पर्यावरण बिनाश का ,हमने बोया बीज
सह्न शक्ति अब ना रही ,आती उसको खीझ

पर्यावरण बिनाश की ,बाढ़ प्रलय हैं पीर
रोदन अब थमता नहीं ,बहता खारा नीर

जितनी भी परियोजना ,सभी लाभ के दांव
सीधे सरल विकास के ,उखड गए हैं पाँव

पर्यावरण बिनाश की ,सुनी नहीं यदि टेर
महाप्रलय  मूंह बाएगी ,भले लगे  कुछ देर 
       

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