Wednesday, September 15, 2010

एक बार ,बस,साल में

लोकतंत्र के पहरुए ,सब काले अँगरेज़
अंग्रेजी सिर पर चढी ,हिंदी से परहेज़
हिंदी को जग जानता ,जन मन गण की चीज़
हमें फिरंगी दे गए ,अंग्रेजी विष बीज
भाषण भाषा भाव में ,अंग्रेजी की गंध
सूरज चन्दा ने किये,खरे खरे अनुबंध
राजनीति तन मन बसा ,तोड़ फोड़ षड्यंत्र
भाषा ,जातिविबाद का ,जपती रहती मन्त्र
आकर हिंदी गाँव से.होय शहर में मौन
अंग्रेजी के सामने ,पूछे उसको कौन
न्यायालय के कंठ में ,अंग्रेजी के बोल
हिंदी जाती है बहाँ ,रोज़ चुकाने मोल
मंदिर मस्जिद तीर्थ में ,सेना या बाज़ार
हिंदी साधू संत की ,बने गले का हार
ताले खोलें तालियाँ ,अंग्रेजी का मन्त्र
हिंदी का सिम सिम लगे,शासन को षड्यंत्र
पद पाने की होड़ में ,अंग्रेजी अनमोल
उत्तर हिंद में दिए ,बिस्तर उसका गोल
जहां कहीं हिंदी करे ,हिंदी में फ़रियाद
अंग्रेजी में फिर बहाँ ,घाटों चले विवाद
हिंदी की खा रोटियाँ ,होनी से परहेज़
सोचो तो उनसे भले ,सचमुच में अँगरेज़
भावी पीढी गा रही,अंगेरजी के गीत
हिंदी बरसों बाद भी ,रहती है भयभीत
रोज़ मीडिया परसता,अंग्रेजी में प्रश्न
सपने हीनी के छीने,लटके अनगिन प्रश्न
त्याग समर्पण सौंप दे ,हिंदी को वर्चश्व
पिघल पिघल बह जाएगा,अंगेरजी सर्वस्व
अंग्रेजी रंग में रंगा ,लोकतंत्र का तंत्र
एक बार बस साल में ,जपता हिंदी मन्त्र
हिंदी की है दुर्दशा ,अंग्रेजी को मन
हीनी दिवस मना रहा ,रो रो हिन्दुस्तान
जब अपने ही राज में ,हिन्दी का अपमान
दुनिया हमसे पूंछती ,कैसा हिन्दुस्तान
[भोपाल:११..०९.०६]

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